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क्या है नासा का Voyager Mission, जानें इससे जुड़े फैक्ट्स और रहस्य

NASA Voyager Mission: Artist's rendering of the Voyager spacecraft design

NASA Voyager Mission

वाशिंगटन, उज्जवल इण्डिया न्यूज़ डेस्क। NASA Voyager Mission: नासा ने इस ब्रह्माण्ड में मौजूद एलियंस का पता लगाने के लिए कई दशक पहले एक मिशन को लांच किया था। यह मिशन अमेरिकी अंतरिक्ष संगठन नासा द्वारा लांच किया गया था। इस मिशन का नाम Voyager Mission है। असल में Voyager इस मिशन के तहत भेजे गए दो स्पेसक्राफ्ट का नाम है।

आपको ये जानकर हैरानी होगी कि Voyager 1 इंसान का बनाया गया अब तक का सबसे दूर गया स्पेसक्राफ्ट है जो धरती से 24 अरब किलोमीटर दूर पहुँच गया है और लगातार आगे बढ़ रहा है। इसने हमारे सौरमंडल को भी पार कर लिया है। ऐसे में आइये जानते हैं नासा के Voyager मिशन के बारे में-

क्या है NASA Voyager Mission

आपको बता दें, नासा ने Voyager मिशन के तहत 1977 में दो स्पेस क्राफ्ट लांच किये थे। एक का नाम Voyager 1 था और दूसरे का नाम Voyager 2 था। Voyager 2 को Voyager 1 से पहले लांच किया गया था। Voyager 2 को फ्लोरिडा के केप केनावरल से 20 अगस्त 1977 में लॉन्च किया गया था वहीँ, Voyager 1 को 5 सितम्बर 1977 को लॉन्च किया गया था।

1977 में हे क्यों लॉन्च किया गया था?

इन दोनों स्पेस क्राफ्ट को 1977 में ही क्यों लांच किया गया इसके पीछे भी एक रहस्य है। दरअसल, खगोलशास्त्रियों द्वारा 1965 में एक अनुमान लगाया गया था। उन्होंने बताया था कि यदि 1970 के दशक के अंत तक यदि कोई अंतरिक्ष यान लॉन्च किया जाए तो वह हमारे सौरमंडल में मौजूद चार विशाल ग्रह बृहस्पति (Jupiter) शनि (Saturn) अरुण (Uranus) और वरुण (Neptune) तक पहुंच सकता है। ऐसा इसलिए क्योंकि उस समय यह चारों ग्रह एक ऐसे अनूठे अलाइनमेंट में थे जिसकी बदौलत स्पेसक्राफ्ट इन चारों में से हर ग्रह के गुरुत्वाकर्षण का इस्तेमाल कर अपनी स्पीड बढ़ा सकता था और अगले ग्रह की ओर बढ़ सकता था। यह अंगूठा सहयोग 176 साल बाद बना था।

चाँद की पहली तस्वीर भेजी

जब Voyager 2 चांद के पास से गुजरा तो उसने धरती पर चांद की तस्वीर भेजी। यह पृथ्वी पर किसी स्पेसक्राफ्ट द्वारा भेजी गई चांद की पहली तस्वीर थी।

सुलझाए जुपिटर के रहस्य

5 मार्च 1979 को Voyager 1 जुपिटर के सबसे नजदीक आया। इसी ने सबसे पहले बताया था कि इस ग्रह पर सक्रिय ज्वालामुखी है। इसकी बदौलती धरती पर मौजूद वैज्ञानिकों को पता चल सका कि इसका ग्रेट रेड स्पॉट असल में एक बड़ा तूफान है और बृहस्पति पर भी बिजली गिरती है। इसके बाद 9 जुलाई 1979 को Voyager 2 की भी जुपिटर से मुलाकात हुई। इसकी बदौलत बृहस्पति के छल्लों “रिंग्स ऑफ़ जुपिटर” की तस्वीर मिली। इस स्पेसक्राफ्ट ने जुपिटर के चांद यूरोपा को भी करीब से देखा।

Jupiter’s Great Red Spot, an anti-cyclonic storm larger than Earth, as seen from Voyager 1 (Photo Credit – NASA)

टाइटन के राज बताये

नवंबर 1979 में Voyager 1 ने शनि के सबसे बड़े चंद्रमा टाइटन को सबसे करीब से देखा। इसकी भेजी हुई जानकारी से ही धरती पर बैठे वैज्ञानिकों को पता चला कि टाइटन पर नाइट्रोजन युक्त वातावरण है इससे यह संभावना मिली कि टाइटन की सतह के नीचे लिक्विड मेथेन और एथेन मौजूद हो सकती है। अगस्त 1981 में Voyager 2 भी शनि के नजदीक पहुंचा। इसने शनि के कई बर्फीले चंद्रमाओं को काफी करीब से देखा।

scientific findings by the two Voyagers at Saturn (Photo Credit – Nasa)

1986 में यूरेनस के करीब पहुंचा

जनवरी 1986 में धरती पर बैठे वैज्ञानिकों ने Voyager 2 की मदद से यूरेनस को काफी करीब से देखा। इससे वैज्ञानिकों को पहली बार पता चला कि यहां का तापमान -195 डिग्री सेल्सियस तक चला जाता है। यानी यूरेनस हमारे सौरमंडल का सबसे ठंडा ग्रह है। इसके अलावा अगस्त 1989 में यह अंतरिक्ष यान नेप्चून या वरुण को सबसे पास से देखने वाला पहला अंतरिक्ष यान बना। फिर इसके बाद इसने हमारे सौरमंडल के बाहर अपनी यात्रा शुरू की।

Photo of Uranus taken by Voyager (Photo Credit – Nasa)

Voyager 1 ने पायनियर 10 को पीछे छोड़ा

17 फरवरी 1998 को पायनियर 10 को पीछे छोड़कर Voyager 1 अंतरिक्ष में सबसे सुदूर पहुँचने वाला मानव निर्मित यान बना। इसके बाद 25 अगस्त 2012 को Voyager 1 हेलियोस्फीयर को छोड़कर इंटरस्टेलर स्पेस में दाखिल हुआ। इंटरस्टेलर स्पेस यानी तारों के बीच मौजूद ऐसा इलाका जो करोड़ साल पहले मरे हुए तारों की सामग्री से भरा पड़ा है। Voyager 2 ने भी 5 अगस्त 2018 को इंटरस्टेलर स्पेस में प्रवेश किया।

Voyager 1 crossed the heliopause, or the edge of the heliosphere, in August 2012. Voyager 2 crossed the heliosheath in November 2018. (Credit: NASA)

एलियंस के लिए सन्देश लेकर गया है Voyager 1

बता दें, नासा के इस मिशन का उद्देश्य हमारे सौरमंडल में मौजूद सबसे बाहरी ग्रहों बृहस्पति (Jupiter) शनि (Saturn) अरुण (Uranus) और वरुण (Neptune) का अध्ययन करना था। लेकिन शायद यह बात काम ही लोगों को पता होगी की ये दोनों स्पेसक्राफ्ट अंतरिक्ष में संभावित परग्रही जीवों यानि एलियंस के लिए पृथ्वी से इंसान का संदेश लेकर भी गए हैं। इन संदेशों को ‘गोल्डन रिकॉर्ड’ कहा जाता है। ये 12 इंच की सोने का पानी चढ़ीं तांबी की डिस्क हैं जिनमें इंसान की कहानी को एलियंस के लिए रिकॉर्ड किया गया है।

The Golden Record cover shown with its extraterrestrial instructions. Credit: NASA/JPL

क्या है संदेश?

गोल्डन डिस्क में रिकॉर्ड की हुई इंसान की कहानी और हमारे सौरमंडल का नक्शा है। इसके अलावा अंतरिक्ष यान में यूरेनियम का एक टुकड़ा भी है। वैज्ञानिकों को उम्मीद है कि यूरेनियम की आयु से एलियंस पता लगा सकेंगे कि यान को कब छोड़ा गया था। साथ ही रिकॉर्ड को प्ले करने के लिए दिशानिर्देश भी हैं।

Making of Golden Record (Credit: Nasa)

एलियंस के लिए क्या भेजा जाए, इसका फैसला नासा की एक विशेष कमेटी ने किया था। उस कमेटी के अध्यक्ष प्रतिष्ठित खगोलविद कार्ल सेगन थे। जो संदेश भेजे गए हैं, उनके साथ धरती पर जीवन की तस्वीरें, संगत, आवाजें आदि शामिल हैं।

नासा ने एलियंस के लिए क्या भेजा है वह इस लिंक पर क्लिक कर देख सकते हैं।

2025 तक ही चलेगी Voyager की बैटरी

वैज्ञानिकों के मुताबिक वॉयजर 1 की बैट्री 2025 के बाद कभी भी खत्म हो सकती है। उसके बाद भी वे आकाश गंगा मिल्की वे में विचरते रहेंगे लेकिन कहां, यह हम कभी नहीं जान पाएंगे। हां, अगर किसी परग्रही ने उन्हें खोज लिया तो हो सकता है वॉयजर इंसान के लिए भविष्य का संदेशवाहक बन जाए।

नवम्बर 2023 में Voyager 1 में आ गयी थी गड़बड़ी

बता दें, पिछले साल 2023 में नासा (NASA) की एक चूक के कारण वॉयजर ने स्पष्ट संदेश भेजना बंद कर दिया था। नवम्बर 2023 में अंतरिक्षयान ने बार-बार एक ही संदेश भेजना धरती पर शुरू कर दिया था। नवंबर के बाद से उसने धरती पर कोई पढ़ा जा सकने लायक डेटा नहीं भेजा था। हालांकि वह पृथ्वी से भेजी गईं कमांड रिसीव कर रहा था।

मार्च में नासा की जेट प्रोपल्सन लैबोरेट्री में काम कर रहे वैज्ञानिकों ने पाया कि वॉयजर 1 की इस गड़बड़ी के लिए एक चिप में आई गड़बड़ी जिम्मेदार थी। इन विशेषज्ञों ने नासा के 46 साल पुराने कंप्यूटर सिस्टम में मौजूद इस चिप को चतुराई भरे एक नए कोड से ठीक किया। अब Voyager 1 यान अपने इंजीनियरिंग सिस्टम्स की स्थिति के बारे में पढ़े जा सकने लायक संदेश भेजने की ओर लौट रहा है।”

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