नई दिल्ली, उज्जवल इण्डिया न्यूज़ डेस्क। One Nation One Election : एक देश एक चुनाव को लेकर पूर्व राष्ट्रपति रामनाथ कोविंद के नेतृत्व में बनाई गयी कमेटी ने अपनी रिपोर्ट मौजूदा राष्ट्रपति द्रौपदी मुर्मू को सौंप दी है। यह रिपोर्ट कुल 18,626 पन्नों की है। इस रिपोर्ट को तैयार करने में भारत के 47 राजनीतिक दलों की राय ली गयी है और सात देशों की चुनाव प्रक्रिया का अध्ययन किया गया है। इन सात देशों में दक्षिण अफ्रीका, स्वीडन, बेल्जियम, जर्मनी, जापान, इंडोनेशिया और फिलीपींस शामिल हैं।

बता दें कि एक देश-एक चुनाव का सीधा सा मतलब है कि देश में होने वाले सारे चुनाव एक साथ करा लिए जाएं। दरअसल, आजादी के बाद कुछ सालों तक लोकसभा और विधानसभा के चुनाव साथ-साथ ही होते थे। लेकिन बाद में समय से पहले विधानसभा भंग होने और सरकार गिरने के कारण ये परंपरा टूट गई।
कोविंद कमेटी में ये थे शामिल
आपको बता दें, One Nation, One Election यानी एक देश एक चुनाव को लेकर रिपोर्ट तैयार करने के लिए 2 सितंबर 2023 को कमेटी का गठन किया गया था। इस कमेटी में पूर्व राष्ट्रपति कोविंद के अलावा गृह मंत्री अमित शाह, गुलाम नबी आजाद, वित्त आयोग के पूर्व अध्यक्ष एन के सिंह, पूर्व लोकसभा महासचिव सुभाष कश्यप और वरिष्ठ अधिवक्ता हरीश साल्वे भी शामिल थे। वहीँ कानून मंत्री अर्जुन राम मेघवाल को आमंत्रित सदस्य बनाया गया था।
बता दें, लोकसभा में कांग्रेस के नेता अधीर रंजन चौधरी को भी समिति का सदस्य बनाया गया था लेकिन उन्होंने समिति को पूरी तरह से छलावा करार देते हुए मना कर दिया था। कमेटी ने 191 दिनों के गहन सोच विचार और रिसर्च के बाद यह रिपोर्ट तैयार की है।
कमेटी के सुझाव
- कोविंद कमेटी ने एक साथ चुनाव कराने के लिए दो चरणों वाले दृष्टिकोण की सिफारिश की है। समिति की रिपोर्ट में कहा गया है कि पहले चरण के रूप में, लोकसभा और विधानसभाओं के लिए एक साथ चुनाव कराए जा सकते हैं। इसके बाद 100 दिन के अंदर दूसरे चरण में स्थानीय निकायों के चुनाव कराए जा सकते हैं।
- कोविंद कमेटी ने सुझाव दिया है कि सभी राज्य विधानसभाओं का कार्यकाल अगले लोकसभा चुनाव यानी 2029 तक बढ़ाया जाए।
- कोविंद कमेटी ने सुझाव दिया है कि चुनाव आयोग लोकसभा, विधानसभा, स्थानीय निकाय चुनावों के लिए राज्य चुनाव अधिकारियों के परामर्श से सिंगल वोटर लिस्ट और वोटर आई कार्ड तैयार करेगा। वहीँ, एकसाथ चुनाव कराने के लिए उपकरणों, जनशक्ति और सुरक्षा बलों की एडवांस प्लानिंग की सिफारिश की है।
- कोविंद कमेटी ने सुझाव दिया है कि लोकसभा और राज्य विधान सभाओं के आम चुनावों के साथ-साथ पंचायतों और नगर पालिकाओं में चुनाव कराने के लिए संविधान में संशोधन कर अनुच्छेद 324A की शुरुआत की जाए।
यह भी पढ़ें : भारत-रूस की तकदीर बदलेगा नया समुद्री रास्ता, दोनों देशों के बीच ‘नॉर्दन-सी-रूट’ को लेकर हुई बातचीत
32 राजनीतिक दल समर्थन में, 15 ने किया विरोध
इंडियन एक्सप्रेस की रिपोर्ट के मुताबिक One Nation, One Election यानी एक देश एक चुनाव को लेकर पूर्व राष्ट्रपति रामनाथ कोविंद की अध्यक्षता वाली कमेटी ने 62 राजनीतिक पार्टियों से संपर्क किया, जिनमें से 47 पार्टियों ने अपनी राय दी। रिपोर्ट के अनुसार, 32 राजनीतिक पार्टियां एक साथ चुनाव कराने के पक्ष में हैं, वहीं 15 पार्टियां इसका विरोध कर रही हैं।

2 राष्ट्रीय दल समर्थन में, 4 विरोध में
राष्ट्रीय दलों में कांग्रेस, आम आदमी पार्टी (AAP), बहुजन समाज पार्टी (BSP) और मार्क्सवादी कम्युनिस्ट पार्टी (CPI) ने देश में एक साथ चुनाव कराने के प्रस्ताव का विरोध किया, जबकि भारतीय जनता पार्टी (BJP) और नेशनल पीपुल्स पार्टी (NPP) ने इसका समर्थन किया।
ये क्षेत्रीय दल समर्थन में
जिन क्षेत्रीय दलों ने एक साथ चुनाव का समर्थन किया उनमें एआईएडीएमके, ऑल झारखंड स्टूडेंट्स यूनियन (आजसू), अपना दल (सोनेलाल), असम गण परिषद, लोक जनशक्ति पार्टी (रामविलास), नेशनल डेमोक्रेटिक प्रोग्रेसिव पार्टी (नागालैंड), सिक्किम क्रांतिकारी मोर्चा, मिजो नेशनल फ्रंट, यूनाइटेड पीपुल्स पार्टी लिबरल ऑफ असम, नीतीश कुमार की जेडीयू, बीजू जनता दल, शिवसेना (शिंदे गुट), अकाली दल और सिक्किम क्रांतिकारी मोर्चा सहित कुल ३० क्षेत्रीय दलों का नाम शामिल है।
इन क्षेत्रीय दलों ने किया विरोध
अगर एक साथ चुनाव का विरोध करने वाली पार्टियों की बात करें तो चार राष्ट्रीय पार्टी, कांग्रेस, आम आदमी पार्टी, सीपीआईएम और बीएसपी हैं। इनके अलावा एआईयूडीएफ, तृणमूल कांग्रेस, एआईएमआईएम, सीपीआई, डीएमके, नागा पीपुल्स फ्रंट (एनपीएफ) और समाजवादी पार्टी (एसपी) शामिल हैं।

ये हैं न्यूट्रल
जिन प्रमुख पार्टियों ने पैनल को जवाब नहीं दिया उनमें भारत राष्ट्र समिति, आईयूएमएल, जेएंडके नेशनल कॉन्फ्रेंस, जेडी(एस), झारखंड मुक्ति मोर्चा, केरल कांग्रेस (एम), एनसीपी, आरजेडी, रिवोल्यूशनरी सोशलिस्ट पार्टी (आरएसपी), टीडीपी, आरएलडी (अब दोनों बीजेपी सहयोगी) और वाईएसआरसीपी शामिल थीं।
राजनीतिक पार्टियों ने विरोध की बताई ये वजह
- आप, कांग्रेस और सीपीआई(एम) ने वन नेशन, वन इलेक्शन के विचार को यह कहकर खारिज कर दिया कि यह लोकतंत्र और संविधान को कमजोर करेगा।
- कई क्षेत्रीय दलों का कहना है कि यह अलोकतांत्रिक, गैर-संघीय कदम होगा, जिससे क्षेत्रीय पार्टियों को नुकसान होगा और राष्ट्रीय पार्टियों का प्रभुत्व बढ़ेगा।
- समाजवादी पार्टी का कहना है कि अगर पूरे देश में एक साथ चुनाव होंगे तो उस स्थिति में क्षेत्रीय पार्टियां, चुनाव खर्च और चुनावी रणनीति के मामले में राष्ट्रीय पार्टियों के साथ प्रतिस्पर्धा नहीं कर पाएंगी।
- बसपा का कहना है कि इसे लागू करना भी काफी चुनौतीपूर्ण होगा।
रिपोर्ट में 2019 की बैठक का जिक्र
रिपोर्ट में कहा गया है कि साल 2019 में सभी राजनीतिक दलों की एक बैठक हुई थी, जिसमें देश में प्रशासन और चुनाव में बड़े बदलावों पर चर्चा हुई थी। उस समय 19 राजनीतिक पार्टियों में से 16 ने बदलावों का समर्थन किया था और सिर्फ तीन ने ही इस विचार का विरोध किया था।
9 पूर्व जजों ने किया समर्थन एक देश एक चुनाव का समर्थन
समाचार एजेंसी पीटीआई के मुताबिक, पूर्व राष्ट्रपति की अध्यक्षता वाली कमेटी ने हाईकोर्ट के जिन पूर्व चीफ जस्टिस की सिफारिश ली है, उनमें से 9 ने एक साथ चुनाव कराए जाने का समर्थन किया है। जबकि जस्टिस अजीत प्रकाश शाह (दिल्ली हाईकोर्ट), गिरीश चंद्र गुप्ता (कलकत्ता हाईकोर्ट) और संजीब बनर्जी (मद्रास हाईकोर्ट) ने इसका विरोध किया है।
वहीं, कमेटी ने जिन सुप्रीम कोर्ट के जिन 4 रिटायर्ड चीफ जस्टिस से मुलाकात की, उन्होंने इसका समर्थन किया है। समर्थन करने वालों जजों में जस्टिस दीपक मिश्रा, रंजन गोगोई, एसए बोबडे और यूयू ललित शामिल हैं।
एक देश एक चुनाव के क्या हैं लाभ?
- पैसों की बर्बादी से बचना: इसके पक्ष में कहा जाता है कि “एक देश एक चुनाव” बिल लागू होने से देश में हर साल होने वाले चुनावों पर खर्च होने वाली भारी धनराशि बच जाएगी। बता दें कि 1951-1952 लोकसभा चुनाव में 11 करोड़ रुपये खर्च हुए थे, जबकि 2019 लोकसभा चुनाव में 60 हजार करोड़ रुपये की भारी भरकम धनराशि खर्च हुई थी। पीएम मोदी कह चुके हैं कि इससे देश के संसाधन बचेंगे और विकास की गति धीमी नहीं पड़ेगी।
- बार-बार चुनाव कराने के झंझट से छुटकारा: “एक देश एक चुनाव” के समर्थन के पीछे एक तर्क ये भी है कि भारत जैसे विशाल देश में हर साल कहीं न कहीं चुनाव होते रहते हैं। इन चुनावों के आयोजन में पूरी की पूरी स्टेट मशीनरी और संसाधनों का इस्तेमाल किया जाता है। लेकिन यह बिल लागू होने से चुनावों की बार-बार की तैयारी से छुटकारा मिल जाएगा। पूरे देश में चुनावों के लिए एक ही वोटर लिस्ट होगी, जिससे सरकार के विकास कार्यों में रुकावट नहीं आएगी।
- काले धन पर लगेगी लगाम: “एक देश एक चुनाव” के पक्ष में एक तर्क यह भी है कि इससे कालेधन और भ्रष्टाचार पर रोक लगने में मदद मिलेगी। चुनावों के दौरान विभिन्न राजनीतिक दलों और उम्मीदवारों पर ब्लैक मनी के इस्तेमाल का आरोप लगता रहा है। लेकिन कहा जा रहा है कि यह बिल लागू होने से इस समस्या से बहुत हद तक छुटकारा मिलेगा।
[…] […]