नई दिल्ली, उज्जवल इण्डिया न्यूज़ डेस्क। Northern Sea Route: लाल सागर क्षेत्र में व्यापारिक जहाजों को जिस तरह हूती आतंकियों द्वारा निशाना बनाया जा रहा है उसके बाद एशिया को यूरोप से जोड़ने वाले वैकल्पिक मार्ग की सम्भावना तलाशी जाने लगी है। इस बीच रूस की सरकारी एटॉमिक एनर्जी कॉरपोरेशन रोसातोम के सीईओ ने खुलासा किया है कि भारत और रूस के बीच “नॉर्दन-सी-रूट” (Northern Sea Route) को संयुक्त रूप से विकसित करने की बात चल रही है। अगर यह वार्ता सफल होती है तो यह नया समुद्री मार्ग भारत और रूस की तकदीर बदल सकता। यह दोनों देशों के लिए गेम चेंजर साबित हो सकता है।
ऐसे में आइये जानते हैं “नॉर्दन-सी-रूट” क्या है और यह किस तरह भारत के को आत्मनिर्भर बनाने में अहम योगदान देगा।
क्या है “नॉर्दन-सी-रूट”
आपको बता दें, नॉर्दन-सी-रूट यानी उत्तरी समुद्री मार्ग यूरोप और एशिया-प्रशांत क्षेत्र के देशों के बीच माल परिवहन के लिए सबसे छोटा समुद्री मार्ग है जो आर्कटिक महासागर के पूर्वी और पश्चिमी हिस्सों को जोड़ता है। यह रास्ता बैरेंट्स और कारा समुद्र (कारा जलसंधि) के बीच की सीमा से शुरू होता है तथा बेरिंग जलसंधि (प्रोविडेनिया खाड़ी) में जा कर रुकता है।
अभी इस तरह रूस से सामान मंगाता है भारत
वर्तमान में रूस से भारत आने वाला जहाज भूमध्य सागर के जरिये आता है। जहाज रूस के सेंट पीटर्सबर्ग से रवाना होता है फिर बाल्टिक सागर, भूमध्य सागर, लाल सागर होते हुए मुंबई पहुँचता है। इस रूट से आने वाले जहाजों को भारी भरकम टैक्स देकर स्वेज नहर से गुजरना होता है। यह समुद्री मार्ग लगभग 16000 किलोमीटर लंबा है। यह सबसे व्यस्त रूट भी है जिसके चलते इस दूरी को तय करने में लगभग एक महीने का समय लगता है। यूरोप से आने वाले सामान का भी यही रूट है।
बाद में इस तरह भारत आएगा सामान
यदि नॉर्दन-सी-रूट विकसित हो जाता है तो सामान रूस के व्लादिवोस्तोक से रवाना होगा और फिर डायरेक्ट जापान सागर, दक्षिण चीन सागर और मलक्का स्ट्रेट होते हुए भारत के चेन्नई पहुंचेगा। ये रूट केवल 10,500 किमी लंबा है। भूमध्य सागर वाले रूट की तुलना में कम व्यस्तता के चलते रूस से भारत सामान आने में केवल दो हफ़्तों का समय लगेगा।
इसके अलावा यूरोप से आने वाला सामान पहले आर्कटिक सागर से होते हुए व्लादिवोस्तोक पहुंचेगा फिर चेन्नई। यह रूट भी भूमध्य सागर वाले रूट की तुलना में 50% छोटा है।
भारत को होगा ये फायदा
आपको बता दें, इस समय भारत रूस से भारी मात्रा में कच्चा तेल और कोयला खरीद रहा है। रूस अब भारत का सबसे बड़ा ऊर्जा सप्लायर बन चुका है। चूंकि भूमध्य सागर वाले रूट पर पश्चिमी देशों का प्रभुत्व है इसलिए रूस पर प्रतिबंधों के चलते रूसी कच्चे तेल को भारत लाने में कई दिक्कतों का सामना करना पड़ रहा है। ऐसे में नॉर्दन-सी-रूट भारत की ऊर्जा जरूरतों को पूरा करने में अहम योगदान देगा। इस रूट के विकसित होने के बाद रूस से बेरोकटोक कच्चा तेल भारत आ सकेगा। चूंकि यह रूट भूमध्य सागर वाले रूट से छोटा है और समय भी कम लगता है ऐसे में भारत के ट्रांसपोर्टेशन में अरबों रुपये भी बचेंगे।
इसके अलावा भारत कई यूरोपीय देशों के साथ भी मुक्त व्यापार समझौता कर रहा है। इसके चलते आने वाले दिनों में यूरोपीय देशों के साथ भारत का व्यापार कई गुना बढ़ने वाला है। यह रूट इस व्यापार में अहम योगदान दे सकता है।
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नॉर्दन-सी-रूट के साथ दिक्कत
बता दें, नॉर्दन-सी-रूट के साथ एक दिक्कत भी जुडी हुई है। दरअसल, आर्कटिक महासागर के समुद्र वर्ष के अधिकांश समय बर्फ से ढके रहते हैं यानी यह रास्ता सर्दियों के समय पूरी तरह से जम जाता है। इस रास्ते से केवल साल के 2 से 4 महीने ही व्यापार हो सकता है। हालाँकि रूस ने इसका भी एक उपाय खोज लिया है। रूस ने बड़ी संख्या में परमाणु ऊर्जा से संचालित बर्फ काटने वाले आइस ब्रेकर जहाज बना लिए हैं जिसके जरिये सर्दियों में भी व्यापार हो सकेगा। वर्तमान में रूस के पास सात परमाणु-संचालित आइसब्रेकर शामिल हैं। वहीँ, रूस 2024 और 2027 के बीच तीन और आइसब्रेकर को शामिल करने की तैयारी कर रहा है।
भारत को यह भी फायदा
आपको बता दें, आर्कटिक क्षेत्र पृथ्वी पर शेष हाइड्रोकार्बन के लिये सबसे बड़ा अज्ञात संभावित क्षेत्र है। अनुमान है कि इस क्षेत्र में तेल और गैस के मौजूदा वैश्विक भंडार का 40% से अधिक हो सकता है। इस क्षेत्र में कोयला, जिप्सम तथा हीरे के समृद्ध भंडार हैं और जस्ता, सीसा, प्लसर सोना तथा क्वार्ट्ज के भी पर्याप्त भंडार हैं। अतः आर्कटिक संभावित रूप से भारत की ऊर्जा सुरक्षा ज़रूरतों और रणनीतिक तथा दुर्लभ पृथ्वी खनिजों की कमी को पूरा कर सकता है। यह आत्मनिर्भर भारत अभियान के लिए भी मील का पत्थर साबित होगा।