नई दिल्ली, उज्जवल इण्डिया न्यूज़ डेस्क। India Vs China: विश्व के जाने माने भूराजनीतिक विशेषज्ञों ने भारत-चीन के बीच एक और युद्ध की भविष्यवाणी की है। भूराजनीतिक विशेषज्ञों का अनुमान है कि हिमालय में दूसरे भारत-चीन युद्ध का खतरा मंडरा रहा है और आशंका जताई गई है कि साल 2025 से 2030 के बीच में कभी भी पूर्वी लद्दाख में भारत औऱ चीन के बीच युद्ध छिड़ सकता है।
हालाँकि पूर्व भारतीय सेना प्रमुख का कहना है कि 2020 में गलवान संघर्ष के बाद चीन को पता चल गया है कि भारत के साथ जंग शुरू करने का दांव उस पर उल्टा पड़ सकता है। पूर्व सेना प्रमुख का कहना है कि चीन कम से कम ताइवान को कब्जाने से पहले भारत के साथ तनाव बढ़ने का जोखिम नहीं उठाएगा।
किसने की है जंग की भविष्यवाणी
आपको बता दें, अगले पांच सालों में भारत और चीन के बीच संभावित युद्ध की भविष्यवाणी “रॉयल यूनाइटेड सर्विसेज इंस्टीट्यूट” (RUSI) ने की है। यह दुनिया का सबसे पुराना और ब्रिटेन का सबसे अग्रणी रक्षा और सुरक्षा थिंक टैंक है जो विश्व स्तर पर रक्षा, राजनीति, और राष्ट्रीय सुरक्षा जैसे विषयों पर अपनी राय रखता है। यह संस्था रक्षा क्षेत्र में विश्व की सबसे भरोसेमंद संस्थाओं में से एक है।
इस संस्था ने “भारतीय क्षितिज पर युद्ध के बादल?” नाम से एक रिपोर्ट जारी की है। इसी रिपोर्ट में अगले पांच सालों में भारत और चीन के बीच संभावित युद्ध की भविष्यवाणी की गयी है। इस रिपोर्ट में इंटरनेशनल पॉलिटिकल रिस्क एनालिटिक्स के अध्यक्ष समीर टाटा ने भविष्यवाणी करते हुए कहा है कि दूसरा चीन-भारत युद्ध 2025 और 2030 के बीच भारत के सुदूर उत्तर पश्चिम क्षेत्र पूर्वी लद्दाख में लड़ा जाएगा।
क्या होगा युद्ध का कारण
पहला कारण : इस रिपोर्ट में इस युद्ध को लेकर पहला कारण यह बताया गया है कि जैसे-जैसे भारत मजबूत हो रहा है वैसे-वैसे चीन को डर सताने लगा है। चीन को डर है कि यदि भारत मजबूत हो गया तो वह पूर्वी लद्दाख यानि अक्साई चिन (चीन के कब्जे वाला लद्दाख) को दुबारा पाने की कोशिश करेगा। अक्साई चिन ही एकमात्र रास्ता है जिसके जरिये चीन के पश्चिमी प्रांत शिनजियांग में स्थित काशगार एनर्जी प्लांट तक पहुंचा जा सकता है। यह एनर्जी प्लांट चीन की रीढ़ है। पूरे चीन को ऊर्जा सप्लाई इसी प्लांट से होती है।
अगर भारत अक्साई चिन को कब्जाने के बाद चीन के इस प्लांट पर कब्ज़ा कर लेता है तो इससे चीन की ऊर्जा व्यवस्था तो ठप हो जाएगी। ऐसे में चीन अपने काशगर एनर्जी प्लांट को सुरक्षित करने के लिए पूर्वी लद्दाख को कब्जाने के उद्देश्य से एक और जंग छेड़ सकता है।
दूसरा कारण : दूसरा कारण यह है कि जैसे-जैसे भारत मजबूत और पाकिस्तान कमजोर हो रहा है वैसे-वैसे पीओके के भारत में दुबारा शामिल होने की सम्भावना बढ़ती जा रही है। चीन के लिए पीओके उसकी दीर्घकालिक रणनीति का हिस्सा है। चीन पीओके को हिन्द-प्रशांत महासागर के व्यापारिक समुद्री मार्ग के विकल्प के तौर पर देखता है।
पीओके से चीन की CPEC परियोजना गुजरती है। यहीं से चीन को काशगार एनर्जी प्लांट के लिए गैस और कच्चा तेल मिलता है जो ईरान से आता है। ईरान से यह पाइपलाइन के जरिये आता है जो पीओके से होकर गुजरती है। ऐसे में चीन नहीं चाहता कि भारत पीओके को कब्ज़ा ले। जब उसे लगेगा कि भारत पीओके को कब्जाने वाला है तब वह पूर्वी लद्दाख में एक फ्रंट खोल देगा ताकि भारत का ध्यान पीओके से भटक जाए।
क्या बोले पूर्व भारतीय सेना प्रमुख
इस भविष्यवाणी पर पूर्व भारतीय सेना प्रमुख जनरल एमएम नरवणे का भी बयान सामने आया है। यूरेशियन टाइम्स से बात करते हुए उन्होंने कहा कि 2020 में गलवान संघर्ष के बाद चीन जानता है कि नया भारत पीछे हटने वाला नहीं है। चीनियों को जिस तरह का जवाब भारत से मिला, वो काफी कड़ा था। ऐसे में चीन अब भारत से उलझते हुए 100 बार सोचेगा।
साथ ही उन्होंने इस बात पर भी जोर दिया कि चीन जिन विवादास्पद मुद्दों को सुलझाना चाहता है, उनमें ताइवान सर्वोच्च प्राथमिकता है। बीजिंग अपना प्राथमिकता को नहीं बदलेगा, क्योंकि जैसे ही वह भारत के साथ नया मोर्चा खोलेगा, वह फिर ताइवान को कभी नहीं कब्ज़ा पायेगा।
हालाँकि, वह इस तर्क से सहमत हैं कि लद्दाख और काराकोरम दर्रा चीन की दीर्घकालिक रणनीति का हिस्सा हैं क्योंकि ये हिस्से CPEC परियोजना के लिए महत्वपूर्ण हैं। नवरणे कहते हैं कि अगर चीन को लगता है कि भारत उस स्थिति में पहुंच रहा है कि पाकिस्तान के कब्जे वाले कश्मीर या तिब्बत में CPEC के रास्ते को काट सकता है तो वह जंग छेड़ सकता है।
आज का भारत 1962 के भारत से अलग
आपको बता दें, कि 1962 में चीन ने भारत पर आक्रमण किया था, जिसमें भारत ने अपने क्षेत्र का एक बड़ा हिस्सा गंवा दिया था। हालांकि, 1962 और आज के भारत में बहुत अंतर आ गया है। भारत ने पूर्वी लद्दाख में चीन के किसी भी पैंतरे को भारी जवाब देने के लिए भारी संख्या में हथियारों और सैनिकों को तैनात कर रखा है।
2020 में जब चीनियों ने अपनी चीनी सीमा पर 80 से ज्यादा तंबू लगाए थे तब भारतीय सशस्त्र बलों ने भी कोई समय नहीं गंवाया और कार्रवाई में जुट गए। सी-130 और सी-17 ट्रांसपोर्ट प्लेन से लगातार भारी हथियार पूर्वी लद्दाख की ऊंची पहाड़ियों पर पहुंचाए गये। भारतीय सेना के 68000 सैनिक, 330 पैदल सेना वाहन, 90 से ज्यादा टैंक, तोपखाने और दूसरे हथियारों को पूर्वी लद्दाख में तैनात किया गया है।
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हाल ही में भारत 10000 सैनिक और किये तैनात
भारत ने हाल ही में चीन के साथ अपनी विवादित सीमा को मजबूत करने के लिए नए सिरे से रणनीति बनाई है। सेना ने वेस्टर्न बॉर्डर पर तैनात 10000 सैनिकों को भारत चीन सीमा पर तैनात किया है। हालांकि सेना के अधिकारियों ने इसके बारे में कोई औपचारिक सूचना नहीं दी है। ये जवान उत्तराखंड से लेकर हिमाचल प्रदेश तक लगती चीन की सीमा पर तैनात किए गए हैं। भारत-चीन सीमा के इस क्षेत्र में पहले से ही 9000 सैनिक तैनात हैं। ऐसे में अब तैनात सैनिकों की संख्या 1 लाख के पार पहुँच गयी है। इस तैनाती से न केवल सीमा पर भारत की पकड़ मजबूत हुई है, बल्कि चीन के ऊपर दबाव भी बढ़ेगा।
राजनाथ सिंह भी कह चुके हैं दो टूक
वहीं, रक्षा मंत्री राजनाथ सिंह का कहना है कि वह सैनिकों के मनोबल को ऊंचा रखने की दिशा में लगातार काम कर रहे हैं। वे भारत पर बुरी नजर डालने वाले किसी भी व्यक्ति को उचित जवाब देने के लिए सक्षम और तैयार हैं। जापान में विदेश मंत्री एस जयशंकर ने कहा कि चीन ने भारत के साथ लंबे समय से चले आ रहे लिखित समझौतों का पालन नहीं किया है। उन्होंने गलवान घटना का जिक्र किया। साथ ही साथ इसके लिए उसे जिम्मेदार ठहराया।