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नई दिल्ली, उज्जवल इंण्डिया न्यूज़ डेस्क। सुप्रीम कोर्ट की संविधान पीठ ने सोमवार को एक ऐतिहासिक फैसला सुनाया। देश की सर्वोच्च अदालत ने सदन में भाषण देने या वोट डालने के लिए रिश्वत लेने वाले सांसदों/ विधायकों का कानूनी संरक्षण समाप्त कर दिया है। यानि वोट के बदले नोट लेने वाले सांसदों और विधायकों को कानूनी संरक्षण नहीं दिया जायेगा। चीफ जस्टिस चंद्रचूड़, जस्टिस एएस बोपन्ना, जस्टिस एमएम सुंदरेश, जस्टिस पीएस नरसिम्हा, जस्टिस जेबी पारदीवाला, जस्टिस संजय कुमार और जस्टिस मनोज मिश्रा की संयुक्त बेंच ने ये फैसला सुनाया। अदालत ने कहा है कि संसदीय विशेषाधिकार के तहत सांसदों/ विधायकों को रिश्वतखोरी की छूट नहीं दी जा सकती।

 

पलटा 26 साल पुराना अपना ही फैसला

 

आपको बता दें, इससे पहले सांसदों/ विधायकों को इस तरह के मामलों में कानूनी संरक्षण प्राप्त था। यह संरक्षण 1998 के पीवी नरसिम्हा राव बनाम संघ मामले में सुप्रीम कोर्ट द्वारा सुनाये गए फैसले के आधार पर मिला था। तब 5 जजों की संवैधानिक पीठ ने 3:2 के बहुमत से फैसला सुनाया था कि वोट के बदले नोट जैसे मामले में जनप्रतिनिधियों पर मुकदमा नहीं चलाया जा सकता है। अदालत ने उस समय कहा था कि सांसदों/विधायकों को अनुच्छेद 105 (2) और 194 (2) के तहत सदन के अंदर दिए गए किसी भी भाषण और वोट के बदले आपराधिक मुकदमे से छूट है। लेकिन अब यह फैसला पलटा जा चुका है। साधारण भाषा में अगर समझाएं तो अब से यदि कोई भी सांसद या विधायक घूसखोरी या पैसे और गिफ्ट लेकर सदन में कुछ भी सवाल पूछता नजर आया या मतदान करता नजर आया तो उसके खिलाफ कानूनी प्रक्रिया शुरू की जा सकती है।

 

क्या था नरसिम्हा राव मामला

 

दरअसल, 1991 लोकसभा चुनाव में कांग्रेस ने जीत हासिल की थी और पीवी नरसिम्हा राव देश के प्रधानमंत्री बनाए गए थे। चुनाव के करीब दो साल बाद जुलाई 1993 में नरसिम्हा राव सरकार को अविश्वास मत का सामना करना पड़ा। हालांकि, सरकार के खिलाफ अविश्वास प्रस्ताव 14 वोटों से गिर गया जब पक्ष में 251 वोट और विरोध में 265 वोट पड़े। इसके बाद भ्रष्टाचार निवारण अधिनियम, 1988 (पीसीए) के तहत एक शिकायत दर्ज की गई जिसमें आरोप लगाया गया कि अविश्वास प्रस्ताव के खिलाफ वोट करने के लिए कुछ सांसदों को रिश्वत दी गई थी।

 

सांसदों ने दिए ये तर्क

 

जब मामला सुप्रीम कोर्ट पहुंचा तो सुनवाई के दौरान आरोपी सांसदों ने दो अहम तर्क प्रस्तुत किए। सबसे पहला तर्क था कि उन्हें संसद में उनके द्वारा डाले गए किसी भी वोट और ऐसे वोट डालने से जुड़े किसी भी कार्य के लिए संविधान के अनुच्छेद 105 के तहत छूट प्राप्त थी। दूसरा तर्क यह था कि सांसद सार्वजनिक पद पर नहीं होते हैं और इसलिए उन्हें पीसीए के दायरे में नहीं लाया जा सकता। न्यायालय इन तर्कों से सहमत हुआ और अप्रैल 1998 में तीन-दो के बहुमत से आरोपी सांसदों के पक्ष में फैसला सुनाया।

 

इस तरह दुबारा सुप्रीम कोर्ट पहुंचा मामला

 

दरअसल, 2012 में झारखंड मुक्ति मोर्चा की विधायक सीता सोरेन पर राज्यसभा चुनाव 2012 में एक उम्मीदवार को वोट देने के लिए रिश्वत लेने का आरोप लगाया गया था।  बाद में जब चुनाव आयोग ने पाया कि राज्यसभा चुनावों में समझौता किया गया था तो चुनावों को रद्द कर दिया। इसी मामले में सीता सोरेन के खिलाफ आपराधिक मामला दर्ज किया गया। सीता सोरेन कानूनी संरक्षण का दावा करते हुए झारखंड उच्च न्यायालय पहुंच गईं। वहां से उन्हें कोई राहत नहीं मिली। इसके बाद वे सुप्रीम कोर्ट गयी। याचिका की सुनवाई करने वाली तीन जजों की बेंच ने माना कि मामले में उठाए गए मुद्दे व्यापक सार्वजनिक महत्व के हैं। लिहाजा मार्च 2019 में सुप्रीम कोर्ट ने मामले को पांच न्यायाधीशों की संविधान पीठ को भेज दिया। इसके बाद सितंबर 2023 को मामले की सुनवाई कर रही पांच जजों की बेंच ने बताया कि झारखंड उच्च न्यायालय का फैसला और सीता सोरेन का बचाव दोनों नरसिम्हा राव वाले मामले पर निर्भर थे। इसलिए नरसिम्हा राव मामले की फिर से जांच करनी पड़ सकती है। इस तरह से मामला सात न्यायाधीशों की पीठ को भेज दिया गया।

 

अब सुप्रीम कोर्ट ने क्या फैसला सुनाया

 

अब सोमवार को फैसला सुनाते हुए मुख्य न्यायाधीश ने कहा कि पीठ के सभी जज इस मुद्दे पर एकमत हैं कि पीवी नरसिम्हा राव मामले मे दिया गया फैसला गलत हैं। मुख्य न्यायाधीश ने कहा कि माननीयों को मिली छूट यह साबित करने में विफल रही है कि उन्हें अपने विधायी कार्यों में इस छूट की अनिवार्यता है। मुख्य न्यायाधीश ने कहा कि संविधान के अनुच्छेद 105 और 194 में रिश्वत से छूट का प्रावधान नहीं है क्योंकि रिश्वतखोरी आपराधिक कृत्य है और ये सदन में भाषण देने या वोट देने के लिए जरूरी नहीं है। पीवी नरसिम्हा राव मामले में दिए फैसले की जो व्याख्या की गई है, वो संविधान के अनुच्छेद 105 और 194 के विपरीत है।

 

PM Modi ने किया निर्णय का स्वागत

 

सांसद और विधायकों को लेकर सुनाए गए इस फैसले का प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने भी स्वागत किया। उन्होंने ट्वीट में लिखा- “स्वागतम । सुप्रीम कोर्ट ने एक महान निर्णय लिया है, जो स्वच्छ राजनीति सुनिश्चित करेगा और सिस्टम में लोगों का विश्वास गहरा करेगा।”

 

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