बेंगलुरु, उज्जवल इण्डिया न्यूज़ डेस्क। कर्नाटक की कांग्रेस सरकार को तगड़ा झटका लगा है। दरअसल, वहां की सरकार हिंदू मंदिरों की कमाई पर टैक्स लगाने की तैयारी कर रही थी। इसके लिए विधानसभा से विधेयक भी पारित हो गया था। लेकिन राज्यपाल थावरचंद गहलोत ने इस विधेयक को नामंजूर करते हुए सरकार को वापस लौटा दिया है। राज्यपाल ने विधेयक में और ज्यादा स्पष्टीकरण के साथ फिर से देने का निर्देश दिया है।
इस आधार पर राज्यपाल ने लौटाया विधेयक
राजभवन की तरफ से कहा गया है कि साल 2011 और 2012 में जो कर्नाटक हिंदू धार्मिक संस्थान और धर्मार्थ बंदोबस्ती विधेयक पेश किया गया था, उस पर हाईकोर्ट की धारवाड़ पीठ ने रोक लगा दी थी। हाईकोर्ट के फैसले को सुप्रीम कोर्ट में चुनौती दी गई, जिस पर सुप्रीम कोर्ट ने हाईकोर्ट के आदेश पर रोक लगा दी थी। राजभवन की तरफ से कहा गया है कि उसके बाद से मामला सुप्रीम कोर्ट में लंबित है। ऐसे में इस पर स्पष्टता जरूरी है कि क्या मामले के लंबित रहने के दौरान उसमें संशोधन किया जा सकता है या नहीं, खासकर जब पूरे विधेयक पर हाईकोर्ट ने रोक लगा दी थी।
फ़रवरी माह में आया था विधेयक
गौरतलब है कि राज्य की कांग्रेस सरकार फरवरी माह में राज्य के हिन्दू मंदिरों की कमाई पर टैक्स लगाने वाला यह कानून लाई थी। इस कानून को ‘कर्नाटक हिंदू धार्मिक संस्थान और धर्मार्थ बंदोबस्ती विधेयक 2024’ नाम दिया गया था। सरकार इस विधेयक के जरिए वार्षिक ₹1 करोड़ से अधिक दान पाने वाले मंदिरों से उनकी कमाई का 10% जबकि ₹10 लाख से ₹1 करोड़ तक दान पाने वाले मंदिरों से 5% टैक्स वसूलना चाहती थी।
कर्नाटक के 34 हजार से ज्यादा मंदिर सरकार के अधीन
आपको बता दें, कर्नाटक में 34 हजार से ज्यादा मंदिर सरकार के अधीन हैं। इन मंदिरों को सरकार ने सालाना कमाई के आधार पर तीन कैटेगरी में बांटा हुआ है। सरकार ज्यादा आमदनी वाले मंदिरों से पैसा लेकर आर्थिक रूप से कमजोर मंदिरों और उनके पुजारियों की भलाई में खर्च करती है। राज्य सरकार का तर्क है कि वह मंदिरों से होने वाली कमाई को बढ़ाना चाहती है, ताकि आर्थिक रूप से कमजोर मंदिरों और उनके पुजारियों की पर्याप्त मदद हो सके। वहीं भाजपा का विरोध है कि सरकार सिर्फ हिंदू मंदिरों पर ही टैक्स क्यों लगा रही है, साथ ही भाजपा और संतों की मांग है कि सरकार पुजारियों को बजट से पैसा क्यों नहीं दे सकती? जैसा वह अन्य धर्म के साथ करती है।
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