इंदौर, उज्जवल इण्डिया न्यूज़ डेस्क। Dhar Bhojshala: धार स्थित भोजशाला को लेकर मध्य प्रदेश हाईकोर्ट की इंदौर पीठ ने बड़ा फैसला दिया है। जिसके चलते अब ज्ञानवापी की तर्ज पर भोजशाला का भी एएसआई सर्वे किया जाएगा। हाईकोर्ट ने सोमवार को सुनवाई के दौरान आर्कियोलॉजिकल सर्वे ऑफ इंडिया (ASI) को पांच एक्सपर्ट की टीम बनाने को कहा है। छह सप्ताह में इस टीम को अपनी रिपोर्ट बनाकर सौंपनी होगी।
आपको बता दें, मां सरस्वती मंदिर भोजशाला के वैज्ञानिक सर्वेक्षण के लिए हिंदू फ्रंट फॉर जस्टिस द्वारा हाईकोर्ट में याचिका लगाई गयी थी। इसी याचिका की सुनवाई करते हुए हाईकोर्ट ने एएसआई को वैज्ञानिक सर्वेक्षण करने का आदेश दिया है।
सुनवाई के दौरान क्या हुआ
हिंदू फ्रंट फार जस्टिस की ओर से हाईकोर्ट में दायर याचिका में मांग की गई थी कि मुसलमानों को भोजशाला (Dhar Bhojshala) में नमाज पढ़ने से रोका जाए और हिंदुओं को नियमित पूजा का अधिकार दिया जाए। हिन्दू पक्ष ने मांग की थी कि भारतीय पुरातत्व सर्वेक्षण को आदेश दिया जाए कि वह ज्ञानवापी की तर्ज पर धार की भोजशाला में सर्वे करे। सोमवार को इसी अंतरिम आवेदन पर बहस हुई ।
हिंदू फ्रंट फॉर जस्टिस ने हाईकोर्ट में याचिका दायर कहा था कि हर मंगलवार को हिंदू भोजशाला में यज्ञ कर पवित्र करते हैं। शुक्रवार को नमाजी यज्ञ कुंड को अपवित्र कर देते हैं। इसपर रोक लगाई जाए। इसका आधिपत्य हिंदुओं को सौंपा और फोटोग्राफी, वीडियोग्राफी और खुदाई करवाई जाए जिससे सच और पुख्ता हो सके।
ASI ने कहा – पहले भी हो चुका है सर्वे, नए सर्वे की आवश्यकता नहीं
भारतीय पुरातत्व सर्वेक्षण की ओर से एडवोकेट हिमांशु जोशी ने कोर्ट को बताया कि वर्ष 1902-03 में पुरातत्व विभाग भोजशाला का सर्वे कर चुका है। इसकी रिपोर्ट भी कोर्ट में प्रस्तुत है। रिपोर्ट के साथ फोटोग्राफ भी संलग्न हैं। इनमें भगवान विष्णु और कमल स्पष्ट नजर आ रहे हैं। नए सर्वे की कोई आवश्यकता ही नहीं है।
मुस्लिम पक्ष भी सर्वे की आवश्यकता को नकार रहा था। उसका कहना था कि वर्ष 1902-03 में हुए सर्वे के आधार पर ही भारतीय पुरातत्व सर्वेक्षण ने आदेश जारी कर मुसलमानों को शुक्रवार को नमाज का अधिकार लिया था। यह आदेश आज भी अस्तित्व में है।
हिन्दू पक्ष ने यह दलील दी
हिंदू फ्रंट फार जस्टिस की तरफ से एडवोकेट हरिशंकर जैन और एडवोकेट विष्णुशंकर जैन ने पैरवी की। उन्होंने कोर्ट को कहा कि पूर्व में भी जो सर्वेक्षण हुए हैं वे साफ-साफ बता रहे हैं कि भोजशाला वाग्देवी का मंदिर है। इससे अतिरिक्त कुछ नहीं। हिंदुओं का यहां पूजा करने का पूरा अधिकार है। हिंदुओं को पूजा का अधिकार देने से भोजशाला के धार्मिक चरित्र पर कोई बदलाव नहीं होगा।
हिंदू पक्ष ने दावा किया की यहां पर सरस्वती माता की मूर्ति थी, जो इन दिनों लंदन के एक म्यूजियम है। मंदिर के पुराने गुंबजों पर संस्कृत में लिखे श्लोक इस दावे को दम देते हैं।
GPR-GPS तकनीक से सर्वे के आदेश
सभी पक्षों की दलीलें सुनने के बाद हाईकोर्ट ने अपने आदेश में कहा है कि परिसर का ज्ञानवापी की तर्ज सर्वे कराया जाए। कोर्ट के आदेश में भोजशाला के GPR-GPS तरीके से सर्वे की बात कही गई है। इस तकनीकी (ग्राउंड पेनिट्रेटिंग रडार) का मतलब होता है जमीन के अंदर विभिन्न स्तरों जांच करना. इसमें राडार का उपयोग किया जाता है। इस कारण इस तकनीकि से जमीन के अंदर की वस्तुओं के विभिन्न स्तर, रेखाओं और आकार को माप लिया जाता है। पूरे सर्वे की फोटोग्राफी और वीडियोग्राफी भी होगी। इसकी रिपोर्ट छह सप्ताह में सौंपनी होगी।
क्या है भोजशाला का इतिहास
परमार वंश के राजा भोज ने 1034 में धार में सरस्वती सदन की स्थापना की थी। यह एक महाविद्यालय था, जो बाद में भोजशाला (Dhar Bhojshala) के नाम से विख्यात हुआ। राजा भोज के शासनकाल में ही यहां मां सरस्वती (वाग्देवी) की मूर्ति स्थापित की गई थी। यह मूर्ति भोजशाला के पास ही खोदाई में मिली थी। 1456 में महमूद खिलजी द्वारा यहाँ मौलाना कमालुद्दीन के मकबरे और दरगाह का निर्माण करवाया गया। 1880 में अंग्रेज भोजशाला में लगी वाग्देगी की मूर्ति को लंदन ले गए थे।
विवाद में कब क्या हुआ
- भोजशाला को लेकर 1995 में मामूली विवाद हुआ था। इसके बाद मंगलवार को हिंदुओं को पूजा और शुक्रवार को मुसलमानों को नमाज पढ़ने की अनुमति दे दी गई।
- 12 मई 1997 को प्रशासन ने भोजशाला में आम नागरिकों के प्रवेश पर प्रतिबंध लगा दिया। हिंदुओं को वसंत पंचमी पर और मुसलमानों को शुक्रवार एक से तीन बजे तक नमाज पढ़ने की अनुमति दी गई। प्रतिबंध 31 जुलाई 1997 तक रहा।
- 6 फरवरी 1998 को पुरातत्व विभाग ने भोजशाला में आगामी आदेश तक प्रवेश पर प्रतिबंध लगा दिया।
- 2003 में मंगलवार को फिर से पूजा करने की अनुमति दी गई। पर्यटकों के लिए भी भोजशाला को खोल दिया गया।
- जब-जब वसंत पंचमी शुक्रवार के दिन आती है, विवाद बढ़ जाता है।