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- Delhi High Court dismissed PIL seeking removal of Arvind Kejriwal as chief ministerकेजरीवाल को CM पद से हटाने वाली याचिका हाईकोर्ट ने की खारिज

नई दिल्ली, उज्जवल इण्डिया न्यूज़ डेस्क। Arvind Kejriwal: दिल्ली के मुख्यमंत्री अरविंद केजरीवाल को CM पद से हटाने की याचिका हाईकोर्ट में खारिज हो गई है। दिल्ली हाईकोर्ट का कहना है कि ये कार्यपालिका का मामला है, जो न्यायपालिका के दायरे में नहीं आता। इसलिए इसमें न्यायिक दखल की जरूरत नहीं है।
बता दें, हाईकोर्ट में यह जनह‍ित याच‍िका सुरजीत सिंह यादव नाम के व्यक्ति ने दायर की थी। याचिका में कहा गया था क‍ि अरविंद केजरीवाल के मुख्यमंत्री पद पर बने रहने से कानून और न्याय की प्रक्रिया बाधा आएगी, साथ ही दिल्ली में संवैधानिक तंत्र भी टूटने का संकट है।

हाई कोर्ट ने कहा कहा?

हाईकोर्ट ने याचिका खारिज करते हुए कहा, ऐसी कोई संवैधानिक बाध्यता नहीं है कि अरविंद केजरीवाल अपने पद पर बने नहीं रह सकते हैं। हाईकोर्ट ने कहा कि अगर संवैधानिक सवाल है, तो उपराज्‍यपाल (एलजी) देखेंगे, वो ही राष्ट्रपति के पास ले जा सकते हैं। हाईकोर्ट ने कहा क‍ि हां, इसमें कुछ प्रैक्टिकल दिक्‍कत होगी, लेकिन हम कैसे एलजी या राष्ट्रपति को कुछ कह सकते हैं। यह केंद्र सरकार का काम है, हम कैसे दखल दें। इस मामले में कोर्ट की कोई भूमिका नहीं है।

याचिकाकर्ता ने दिया ये तर्क

याचिकाकर्ता यादव ने तर्क दिया है कि वित्तीय घोटाले में फंसे एक मुख्यमंत्री जो 28 मार्च तक ईडी की हिरासत में हैं, उन्‍हें पद पर बने रहने की अनुमति नहीं दी जानी चाहिए। उन्होंने कहा कि उनका कारावास में होना न केवल कानून की उचित प्रक्रिया में बाधा डालता है, बल्कि राज्य की संवैधानिक मशीनरी को भी कमजोर करता है। याचिकाकर्ता ने संविधान के अनुच्छेद 163 और 164 का हवाला देते हुए दावा किया है कि एक कैदी केजरीवाल को मुख्यमंत्री के रूप में अपने कर्तव्यों और जिम्मेदारियों को पूरा करने में अक्षम बनाती है।

याचिकाकर्ता ने एक तर्क यह भी दिया कि जब भी मुख्यमंत्री केजरीवाल जेल से कोई आदेश का पत्र जारी करेंगे तो वह जेल के कई अधिकारियों के समक्ष होते हुए गुजरेगा। ऐसे में यह मुख्यमंत्री द्वारा खाए जाने वाली गोपनीयता की शपथ का भी उल्लंघन है। इसके अलावा, यादव ने तर्क दिया है कि केजरीवाल को अपना पद बरकरार रखने की इजाजत देने से उन्हें उन जांचों को प्रभावित करने की इजाजत मिल जाएगी, जिसमें उन्हें फंसाया गया है और यह आपराधिक न्यायशास्त्र के सिद्धांतों का खंडन करता है।

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