न्यूयोर्क, उज्जवल इण्डिया न्यूज़ डेस्क। Europa Clipper Mission: यूरोपा बृहस्पति (Jupiter) ग्रह के सबसे बड़े चद्रमाओं में शामिल है। वैज्ञानिकों का दावा है कि यूरोपा पर जीवन हो सकता है। ऐसे में इसी की खोज के लिए अमेरिकी अंतरिक्ष संगठन नासा (NASA) क्लिपर स्पेसक्राफ्ट (Clipper Spacecraft) लॉन्च करने की तैयारी कर रहा है। यह स्पेसक्राफ्ट यूरोपा पर जीवन की तलाश करेगा है। इस मिशन के इसी साल अक्टूबर में लॉन्च होने की उम्मीद है। इस पूरे मिशन का नाम यूरोपा क्लिपर मिशन (Europa Clipper Mission) है।
बृहस्पति के 90 से ज्यादा उपग्रहों में से एक है यूरोपा
आपको बता दें, यूरोपा हमारे सौरमंडल के सबसे बड़े ग्रह बृहस्पति के 90 से ज्यादा उपग्रहों में से एक है। वैज्ञानिकों को लगता है कि यूरोपा बर्फीले पानी में डूबा हुआ है। उन्हें उम्मीद है कि यहां पर जीवन पनपने लायक परिस्थितियां हो सकती है।

‘क्लीन रूम’ में रखा है NASA का ‘क्लिपर’ प्रोब
5 बिलियन डॉलर की लागत से तैयार ‘क्लिपर’ प्रोब अभी कैलिफोर्निया स्थित NASA की जेट प्रपल्शन लैबोरेटरी (JPL) में मौजूद है। इसे एक ‘क्लीन रूम’ में रखा गया है। एरिया पूरा सील है। केवल सिर से पैर तक ढके लोगों को ही अंदर जाने की इजाजत है। इतनी सावधानी इसलिए बरती जा रही है कि ताकि स्पेसक्राफ्ट किसी तरह के संक्रमण से बचा रहे। नहीं तो धरती के माइक्रोब्स यूरोपा तक पहुंच सकते हैं।
कब तक यूरोपा के पास पहुंचेगा नासा का यान?
‘क्लिपर’ को फ्लोरिडा के कैनेडी स्पेस सेंटर से लॉन्च किया जाएगा। इसके लिए Spacex के फाल्कन हेवी रॉकेट का इस्तेमाल होगा। फिर यह पांच साल की अपनी यात्रा शुरू करेगा। बीच में मंगल ग्रह के पास यह अपनी रफ्तार बढ़ाएगा। वैज्ञानिकों को उम्मीद है कि 2031 तक ‘क्लिपर’ जुपिटर और यूरोपा की कक्षा के पास पहुंच जाएगा। फिर यह यूरोपा की डिटेल स्टडी शुरू करेगा।

किन-किन उपकरणों से लैस है क्लिपर?
NASA के मुताबिक, क्लिपर में कैमरा, स्पेक्ट्रोमीटर्स, मैग्नेटोमीटर और रडार जैसे इंस्ट्रुमेंट्स लगे हैं। ये बर्फ में दाखिल हो सकते हैं, पानी पर तैर सकते हैं और फिर सतह पर आकर बता पाएंगे कि बर्फ की परत कितनी मोटी है या पानी तरल रूप में कहां मौजूद है।
Europa Clipper Mission से क्या पता चलेगा?
NASA को ‘क्लिपर’ प्रोब मिशन से यूरोपा पर एलियंस मिलने की उम्मीद नहीं है। असल में एजेंसी जीवन की खोज कर ही नहीं रही, वह उन परिस्थितियों की तलाश में है जिनमें जीवन पनप सकता है। वैज्ञानिकों को पृथ्वी पर रिसर्च से पता चला है कि छोटे जीव बेहद प्रतिकूल परिस्थितियों में भी जिंदा रह सकते हैं। वे ध्रुवीय बर्फ के नीचे बेहद गहराई में मौजूद जियोथर्मल वेंट – जहां प्रकाश तक नहीं पहुंचता – में भी पाए जाते हैं। यूरोपा लगभग पृथ्वी के चंद्रमा जितना बड़ा है। वहां की परस्थितियां धरती जैसी हो सकती हैं।

आसान नहीं है यूरोपा पर जीवन की खोज
यूरोपा के चारों तरफ बेहद ताकतवर रेडिएशन फील्ड मौजूद है। इससे ‘क्लिपर’ के इंस्ट्रुमेंट्स को नुकसान पहुंच सकता है। ‘क्लिपर’ को यूरोपा की एक परिक्रमा में एक लाख एक्स-रे के बराबर रेडिएशन झेलना होगा। पृथ्वी से यूरोपा की दूरी 628.3 मिलियन किलोमीटर है। इतनी ज्यादा दूरी का नतीजा यह होगा कि ‘क्लिपर’ जो भी डेटा भेजेगा, वह NASA के मिशन कंट्रोल तक 45 मिनट बाद पहुंचेगा।
क्या बोले वैज्ञानिक
मिशन के परियोजना वैज्ञानिक बॉब पप्पालार्डो ने एएफपी को बताया, ” नासा जिन मूलभूत प्रश्नों को समझना चाहता है उनमें से एक यह है कि क्या हम ब्रह्मांड में अकेले हैं? अगर हमें जीवन के लिए परिस्थितियां ढूंढनी हों और फिर किसी दिन वास्तव में यूरोपा जैसी जगह पर जीवन मिल जाए, तो यह कहा जाएगा कि हमारे अपने सौर मंडल में जीवन के दो उदाहरण हैं: पृथ्वी और यूरोपा। यह समझने के लिए बहुत बड़ी बात होगी कि पूरे ब्रह्मांड में जीवन कितना सामान्य हो सकता है।”
यूरोपा क्लिपर मिशन के प्रोजेक्ट मैनेजर जॉर्डन इवांस ने कहा, अगर तारों से दूर ग्रहों के चारों ओर चंद्रमा पर जीवन हो सकता है तो सौर मंडल के चारों ओर, ब्रह्मांड के चारों ओर, जहां जीवन हो सकता है, अवसरों की संख्या नाटकीय रूप से बढ़ जाएगी।
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