नई दिल्ली, उज्जवल इण्डिया न्यूज़ डेस्क। Inheritance Tax Row: ओवरसीज कांग्रेस के अध्यक्ष और राहुल गाँधी के सलाहकार सैम पित्रोदा के बयान ने भारत में विरासत टैक्स (Inheritance Tax) को लेकर नयी बहस छेड़ दी है। आपको बता दें, जिस विरासत टैक्स की बात सैम पित्रोदा ने कही वह देश में 3 दशकों तक लागू था। लेकिन इंदिरा गाँधी के मरने के बाद उनकी 100 प्रतिशत संपत्ति पाने के लिए तत्कालीन प्रधानमंत्री राजीव गांधी ने इस कानून को खत्म कर दिया था।
भारत में लागू था ऐसा ‘विरासत कर’
भारत में एस्टेट ड्यूटी एक्ट 1953 के तहत विरासत पर टैक्स लगाया जाता था। यह टैक्स विरासत में मिली संपत्ति के मूल्य का 85% तक हो सकता था। जैसे अभी इनकम टैक्स में स्लैब हैं, उसी तरह संपदा शुल्क के स्लैब बने थे।
जिस प्रॉपर्टी की कीमत जितनी ज्यादा होती थी, उस पर उतना अधिक टैक्स लगता था। जैसे 20 लाख रुपए से ऊपर की संपत्तियों पर 85% टैक्स लगता था, जिसका मतलब है कि मालिक की मृत्यु के बाद लगभग सभी संपत्ति सरकार द्वारा हड़प ली जाती थी। इसके तहत नागरिकों को दो बार संपत्ति से जुड़ा कर भरना पड़ता था एक तो जीवन रहते (जिसे 2016 में मोदी सरकार ने बंद करवा दिया) और फिर उनके निधन पर भी।
देश में बढ़ गए थे बेनामी प्रॉपर्टी के मामले
हालांकि इस व्यवस्था का वैसा लाभ नहीं हुआ, जैसे कांग्रेस ने सोचा था। जिस प्रकार से कांग्रेस ने इस कर को लागू करके धन जुटाने की सोची थी वो भी लक्ष्य पूरा नहीं हुआ क्योंकि जब देश में ऐसा कर आ गया तो फिर लोग बेनामी प्रॉपर्टी के मामले और संपत्ति छिपाने के मामले ज्यादा बढ़ गए। अंत में ये एक्ट 1985 में जाकर खत्म कर दिया गया।
राजीव गांधी ने कब और कैसे खत्म किया कानून
इस कानून को राजीव गांधी सरकार के पहले बजट में ही समाप्त कर दिया गया। उस समय वीपी सिंह वित्त मंत्री थे। हालाँकि दिलचस्प बात ये है कि जिस समय पर ये कानून रद्द किया गया वो वही समय था जब पूर्व प्रधानमंत्री इंदिरा गाँधी की प्रॉपर्टी उनके पोते-पोतियों के नाम पर होनी थी। घोषणा हुई कि ये कानून 1 अप्रैल 1985 के बाद से लागू नहीं होगा।
इसके ठीक एक महीने बाद यानी 2 मई 1984 को इंदिरा गांधी की वसीयत प्रकाशित हुई। इसके बाद 2 मई 1985 को इंदिरा गाँधी की करीबन 21 लाख 50 हजार की संपत्ति उनके तीन पोते-पोतियों में हस्तांतरित हो गई। आज उस प्रॉपर्टी की कीमत करीब 4.2 करोड़ रुपए है।
Inheritance Tax in India was abolished in 1985 by Rajiv Gandhi. The timing though is highly suspect.
Total $173,000 of estate was passed on by Indira Gandhi as inheritance, post her death in 1984, to her three grandchildren Rahul Gandhi, Priyanka Gandhi and Varun Gandhi.
In… pic.twitter.com/H9g51bYCHc
— Akhilesh Mishra (मोदी का परिवार) (@amishra77) April 24, 2024
पोते-पोतियों के नाम हो गयी सारी संपत्ति
यूनाइटेड प्रेस इंटरनेशनल (यूपीआई) की 2 मई 1985 की एक रिपोर्ट के अनुसार, 1981 में हस्ताक्षरित वसीयत में इंदिरा गाँधी ने अपने बेटे राजीव गाँधी और उनकी पत्नी सोनिया गाँधी को वसीयत का निष्पादक (एग्जिक्यूटर) नियुक्त किया था, लेकिन बाद में उन्होंने उन्हें कुछ नहीं दिया। उन्होंने अपनी बहु मेनका गाँधी के लिए भी कुछ नहीं छोड़ा था। सारी संपत्ति तीनों पोते-पोतियों के नाम की गई थी।
अखबार में प्रकशित हुआ था इंदिरा गाँधी की संपत्ति का ब्योरा
बता दें कि राजीव गाँधी द्वारा ये वसीयत कोर्ट में दिखाए जाने के बाद इसे अखबार में भी पब्लिश किया गया था। इस विल के अनुसार इंदिरा गाँधी संपत्ति का बड़ा हिस्सा महरौली में निर्माणाधीन एक खेत और एक फार्महाउस था, जिसकी कीमत 98,000 डॉलर थी (आज के हिसाब से 81,72,171 रुपए) है।
इसके अलावा तीनों बच्चों के नाम इंदिरा गाँधी और जवाहरलाल नेहरू द्वारा लिखित पुस्तकों के कॉपीराइट के साथ-साथ इकट्ठा हुए लगभग 75,000 डॉलर की नकदी, स्टॉक और बांड भी थे। वहीं इंदिरा गाँधी की प्राचीन वस्तुएँ और लगभग 2500 डॉलर की निजी आभूषण केवल प्रियंका गाँधी के लिए छोड़े गए थे। 1984 में तीनों वारिस नाबालिग थे इसलिए उस समय राजीव गाँधी और सोनिया गाँधी को उनके बड़े होने तक संपत्ति संभालने की जिम्मेदारी दी गई।
टाइम लाइन पर उठ रहे सवाल
अब ये ध्यान देने वाली बात है कि जिस देश में 20 लाख से अधिक संपत्ति होने पर 85% प्रॉपर्टी सरकार को चली जाती थी, वो नियम राजीव गाँधी की सरकार में ठीक उस समय पलटा गया जब उनके बच्चों को उनकी दादी की विरासत मिलनी थी। ऐसे में कांग्रेस की मंशा पर सवाल उठना लाजमी है।
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